यूपी में बढ़ा कर्ज का बोझ, हर नागरिक पर 37,500 रुपये की देनदारी
- ब्यूरो

- 22 अग॰
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश ने हाल के वर्षों में बुनियादी ढांचे और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन साथ ही राज्य पर कर्ज का बोझ भी तेजी से बढ़ा है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में प्रदेश के प्रत्येक नागरिक पर औसतन 37,500 रुपये का ऋण आंका गया है। अनुमान है कि अगले पांच वर्षों में प्रदेश का कुल कर्ज 6 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर करीब 9 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा।
राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बावजूद इसके सरकार का राजस्व घाटा 2.97 प्रतिशत है, जो कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा तय 3 प्रतिशत की सीमा के भीतर है। यही वजह है कि पिछले पांच वर्षों में बजट का आकार भी लगभग दोगुना हो गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य पर ऋण का बोझ विकास का सूचक भी माना जाता है, क्योंकि जितना अधिक निवेश बुनियादी और सामाजिक ढांचे पर किया जाता है, उतनी ही उधारी बढ़ती है। शर्त यही है कि यह खर्च पारदर्शिता और सुनियोजित प्रबंधन के तहत किया जाए। असल महत्व ऋण के आकार का नहीं, बल्कि इसके उपयोग और समय पर अदायगी की क्षमता का होता है।
अत्यधिक ऋण विकासशील अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल सकता है और ब्याज अदायगी का बोझ भी बढ़ा सकता है। इसलिए यूपी जैसे बड़े राज्य के लिए संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। वित्त आयोग के अनुसार, 2023-24 में राज्य पर कुल कर्ज 7.76 लाख करोड़ रुपये था, जो 2025-26 में बढ़कर 9 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने की संभावना है।
साल-दर-साल कर्ज का आंकड़ा (करोड़ रुपये में):
2020-21 : 5,64,089
2021-22 : 6,21,836
2022-23 : 6,71,134
2023-24 : 7,76,783
2024-25 : 8,46,096
2025-26 : 9,03,924
राजकोषीय घाटा नियंत्रण में
राजकोषीय घाटा उस स्थिति को दर्शाता है जब सरकार का व्यय उसकी वास्तविक आय (ऋण को छोड़कर) से अधिक हो जाता है। यह बताता है कि सरकार को अपने खर्च पूरे करने के लिए कितनी उधारी की आवश्यकता पड़ी। लगातार उच्च घाटा वित्तीय दबाव को बढ़ाता है, लेकिन यदि यह घाटा नियंत्रित दायरे में रहे और उधारी का इस्तेमाल सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और जल आपूर्ति जैसे क्षेत्रों में हो, तो यह आर्थिक विकास को गति भी देता है।
वित्त वर्ष 2025-26 में उत्तर प्रदेश का अनुमानित राजकोषीय घाटा 91,400 करोड़ रुपये रहने की संभावना है, जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.97 प्रतिशत है। यह अनुपात केंद्र सरकार द्वारा तय 3 प्रतिशत की सीमा के भीतर है, जिससे स्पष्ट है कि राज्य सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाए रखा है।





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