उपासना यादव
सुरम्य पोस्ट , नवंबर 7, 2024
संग्रहणी रोग को श्वेतातिसार रोग या स्प्रू रोग भी कहते हैं, अंग्रेजी में इस रोग का नाम Collectible disease है।
संग्रहणी रोग में मरीज को सुबह बिना किसी दर्द के हल्का और फेन दार खडि़या (मिट्टी के) रंग का पानी के समान पतला दस्त आता है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है वैसे-वैसे सायंकाल भी भोजन के बाद तुरंत दस्त भी आने लगता है। लेकिन इससे रोगी को तुरंत कोई कष्ट महसूस नही होता है, इसके बाद पेट फूलना और बद हजमी आदि जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।
संग्रहणी रोग के कारण
हम लोगों का जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि हमारे पास स्वयं के लिए भी समय नहीं रह गया है। इसी वजह से लोग पोषण रहित फास्टफूड का सेवन कर पेट तो भर लेते हैं, किंतु यह नहीं समझते कि इससे स्वास्थ्य की कितनी हानि हो रही है। ऐसे पदार्थों के नियमित सेवन से धीरे-धीरे पाचक अग्नि विकृत हो जाती है, जो अधिकांश रोगों का मूल कारण बनती है । संग्रहणी रोग पाचन संस्थानगत रोगों में प्रमुख रोग है । पाचन संस्थान के अन्य रोगों के समान इस रोग का प्रधान कारण भी मंदाग्नि है । मुख से लेकर गुदा तक पाचन प्रणाली के सारे अवयव इस रोग में विकृत हो जाते हैं, किंतु प्रधान रूप से ग्रहणी की विकृति से ही यह रोग होता है ।
संग्रहणी पाचक अग्नि का प्रधान केंद्र है। संग्रहणी शब्द से छोटी आंत का प्रारंभिक भाग या केवल छोटी आंत का ही अर्थ लेना चाहिए। आंत के इस भाग में ही मुख्य रूप से आहार का पाचन होता है। इसी स्थान पर लिवर द्वारा स्रवित पित्त एवं आन्याशय द्वारा स्त्रवित अग्न्यायिक रस आहार के साथ मिलकर उसका पाचन करते हैं। वसा के पाचन का भी यही प्रधान केंद्र है। संग्रहणी का सामान्य कार्य पाचन के लिए अनपचे अन्न का धारण करना एवं पाचन के बाद बचे हुए अंश को आंत में आगे की ओर सरका देना है।
संग्रहणी का यह कार्य अग्नि के बल पर निर्भर है । प्रारंभ से ही जिनकी अग्नि मंद हो या अतिसार के कारण जिनकी अग्नि मंद हो गई हो, ऐसे व्यक्ति यदि अपथ्य का सेवन करते हैं, तो उनकी अग्नि पुनः अधिक मंद एवं विकृत होकर संग्रहणी को भी दूषित कर आहार को कभी अर्धपक्वावस्था में, कभी पक्वावस्था में अनेक बार त्यागती है। इससे मल दुर्गन्धित, कभी बंधा, कभी तरल, अनेक बार पीड़ा के साथ निकलता है । यह ग्लूकोज वसा तथा विटामिन के अवशोषण में अवरोध उत्पन्न हो जाने से होने वाला रोग है ।
संग्रहणी रोग में आंत की श्लेष्मिक कला में सूजन आ जाने से अधिक स्राव होने लगता है, जिससे पाचक रस आहार पर सम्यक क्रिया नहीं कर पाते और आहार बिना पचे ही आंत में आगे की ओर सरकते हुए आंव के रूप में बाहर निकल जाता है। आहार का उचित पाचन नहीं होने से विटामिन, कैल्शियम, ग्लूकोज, वसा आदि का भी सम्यक पाचन एवं शोषण नहीं हो पाता । पोषण अभाव से व्यक्ति कालान्तर में अति दुर्बल हो जाता है, वजन घटने लगता है, उसे अपच हो जाता है, वसायुक्त दस्त आने लगते हैं।
संग्रहणी रोग के लक्षण
भोजन से अरुचि होना ।
स्वाद की अनुभूति नहीं होना।
लार अधिक आना।
प्यास अधिक लगना।
हाथ-पैरों में सूजन आना ।
संधियों में दर्द होना।
सिरदर्द होना ।
खट्टी डकारें आना।
उल्टी होना।
बुखार आना ।
मूर्छा होना ।
आंखों के सामने अंधेरा छा जाना ।
शरीर दुबला होना ।
आलस्य आना ।
बल का नाश होना ।
आहार का देर से पचना।
प्यास अधिक लगना।
शरीर में भारीपन होना ।
संग्रहणी रोग के प्रकार |
संग्रहणी रोग के घरेलू उपचार
संग्रहणी रोग के घरेलू उपचार निम्न प्रकार से कर सकते हैं
बेल के कच्चे फल को आग में सेंक कर उसका गुदा निकाल कर, दस ग्राम गुदे में थोड़ी सी चीनी मिलाकर सेवन करते रहने से इस रोग से लाभ होता है ।
दो ग्राम भांग को भूनकर तीन ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से इस रोग में शीघ्र लाभ होता है।
छह ग्राम खजूर के फल को गाय के दूध से बनी बीस ग्राम दही के साथ सेवन करने से बच्चों को संग्रहणी रोग से लाभ होता है।
पचास ग्राम मीठे आम के रस में मीठी दही दस बीस ग्राम तथा एक चम्मच अदरक का रस रोज दिन में दो से तीन बार लगातार पिलाने से कुछ दिन के बाद इस लोग में चमत्कारिक रूप से लाभ होता है।
पिप्पली, भांग तथा सोंठ के चूर्ण तथा पुराना गुड़ छह-छह ग्राम एकत्र कर के इन्हे खरल कर तीन ग्राम की मात्रा में दिन में तीन- चार बार लेने से संग्रहणी में लाभ होता है।
बड़ी इलायची के दाने दस ग्राम, सौंफ साठ ग्राम, नौसादर बीस ग्राम सभी को तवे पर भून कर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें तथा इसे एक-एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से इस रोग में लाभ होता है।
खाना बनाते समय उसमें दालचीनी, पिप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, मरिच, कैथ का गूदा, मोचरस, पंचकोल, नागरमोथा आदि का प्रयोग करना लाभ दायक होता है।
संग्रहणी रोग में परहेज
इस रोग में परहेज रखना अति आवश्यक है, क्योंकि जरा सी भी बदपरहेजी इस रोग को लक्षणों को तुरंत पुन: से उभार देती है। इस रोग में निम्न परहेज रखना आवश्यक होता है।
चिकनाई युक्त पदार्थ ।
गरिष्ठ पदार्थ।
रिफाइंड तेल ।
पसालेदार भोजन।
अरबी, भिंडी आदि लसदार सब्जियां।
मांसाहार जैसे मीट मछली आदि
सभी मादक एवं उत्तेजक पदार्थों का सेवन ।
किसी भी तरह का भारी परिश्रम आदि ।
संग्रहणी रोग में फायदा करने वाले पदार्थ
संग्रहणी रोग में निम्न पद्रार्थों का सेवन लाभ प्रद रहता है
गेहूं, ज्वार या बाजरे की रोटी।
पुराना चावल।
मूंग, मसूर या कुलथी की दाल।
लौकी, कद्दू, तुरई, परवल की सब्जी।
बकरी का दूध,।
गाय का घी, तिल का तेल, दही, मट्ठा, मक्खन।
शहद का सेवन ।
कैथ, बेल, अनार, संतरा, केला, पपीता का सेवन ।
धान के लावे का मांड।
सिंघाडा का सेवन आदि
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