हरिद्वार में गंगा दशहरे पर उमड़ा आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं ने लगाई पुण्य की डुबकी, हाईवे पर भीषण जाम
- संवाददाता
- 5 जून
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गंगा दशहरे के पावन अवसर पर हरिद्वार की धर्मनगरी एक बार फिर श्रद्धा और आस्था के रंग में रंग गई। हजारों श्रद्धालुओं ने मां गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित किया। इस दौरान हरिद्वार-देहरादून हाईवे पर भारी भीड़ के चलते लंबा जाम लग गया, जिससे यात्रियों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा।
गंगा दशहरा पर्व, जिसे मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस बार विशेष ज्योतिषीय संयोगों के कारण और भी खास बन गया। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा की गहराई को दर्शाता है।
दुर्लभ योगों ने बढ़ाई पर्व की महत्ता
इस वर्ष गंगा दशहरा पर हस्त नक्षत्र, सिद्धि योग और व्यतिपात योग का अत्यंत दुर्लभ संयोग बना, जो कई दशकों बाद देखने को मिला है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इन शुभ योगों में गंगा स्नान, दान, जप और तप से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इन ही योगों में देवी गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।
गंगा की महिमा और पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप मां गंगा स्वर्गलोक से धरती पर अवतरित हुईं। तभी से गंगा न केवल जीवनदायिनी मानी जाती हैं, बल्कि मोक्षदायिनी भी हैं। गंगा दशहरे के दिन मां गंगा की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है।
ज्योतिषाचार्य उदय शंकर भट्ट के अनुसार, "इस विशेष संयोग में मां गंगा का पूजन और स्नान व्यक्ति के तन और मन दोनों को शुद्ध करता है। यह पर्व आत्मकल्याण और समाज के आध्यात्मिक उन्नयन का प्रतीक है।"
संस्कृति का उत्सव, श्रद्धा का संगम
हरिद्वार में पर्व के दौरान घाटों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। लोगों ने गंगा जल से आचमन कर पूजा की, व्रत रखे और दान पुण्य किया। घाटों पर गूंजते मंत्रोच्चार और हर-हर गंगे के जयघोष ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
गंगा दशहरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवंत परंपरा है—जहां प्रकृति, श्रद्धा और आत्मशुद्धि का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। इस दिन का हर क्षण मानो पुण्य की अमृतधारा बनकर बहता है, जो हर हृदय को आस्था से सराबोर कर देता है।
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