ब्यूरो | फरवरी 10, 2025
कानपुर। उत्तर प्रदेश में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कार्यरत डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर सरकार ने सख्ती बढ़ा दी है। सरकारी अस्पताल में तैनात डॉक्टरों द्वारा मरीजों को निजी अस्पताल में इलाज कराने के लिए मजबूर करने की शिकायतों के बाद शासन ने कड़ा रुख अपनाया है। अब ऐसे डॉक्टरों पर जिलाधिकारी की सीधी नजर होगी। यदि किसी डॉक्टर की निजी प्रैक्टिस की पुष्टि होती है, तो उनसे प्रैक्टिस बंदी भत्ता (NPA) की वसूली की जाएगी और उनका लाइसेंस भी निरस्त किया जा सकता है।

निजी प्रैक्टिस रोकने के लिए सरकार की कड़ी कार्रवाई
शासन स्तर पर सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर लगाम लगाने के लिए लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। इस सख्ती का असर अब दिखने भी लगा है। शहर में कई सरकारी और अनुबंधित डॉक्टर, जो निजी प्रैक्टिस में व्यस्त रहते थे, अब अस्पतालों में अधिक समय देने लगे हैं। इससे सरकारी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और मरीजों को राहत मिल रही है।
सरकारी अस्पतालों में बढ़ी सर्जरी की संख्या
कार्रवाई के बाद सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की उपलब्धता बढ़ने से सर्जरी की संख्या में भी इजाफा हुआ है। पहले कई मामलों में मरीजों को निजी अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर किया जाता था, लेकिन अब सरकारी अस्पतालों में इलाज बेहतर हो रहा है।
निजी प्रैक्टिस में लिप्त डॉक्टरों पर कार्रवाई जारी
हाल ही में शासन ने कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के न्यूरो सर्जन सह-आचार्य डॉ. राघवेंद्र गुप्ता पर सख्त कदम उठाते हुए उनका तबादला झांसी मेडिकल कॉलेज कर दिया था। सरकार का स्पष्ट संदेश है कि यदि कोई सरकारी डॉक्टर नियमों का उल्लंघन करते हुए निजी अस्पतालों में प्रैक्टिस करता पाया गया, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी।
शासन का कड़ा संदेश
सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकारी डॉक्टरों को अपने दायित्वों का ईमानदारी से पालन करना होगा। यदि किसी डॉक्टर की निजी प्रैक्टिस की पुष्टि होती है, तो उसे आर्थिक दंड के साथ-साथ सेवा से भी हटाया जा सकता है। जिलाधिकारी लगातार ऐसे मामलों की निगरानी कर रहे हैं और जरूरत पड़ने पर त्वरित कार्रवाई की जाएगी।
Comments