ब्यूरो | जनवरी 26, 2026
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के मीरजापुर स्थित अतरैला शिवगुलाम टोल प्लाजा पर बड़े स्तर पर टोल टैक्स घोटाला सामने आया है। हर महीने लगभग 8,000 बिना फास्टैग वाहनों से नकद टोल वसूला जाता था, लेकिन एनएचएआई (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) को मात्र 20-25 हजार रुपये ही मिलते थे। घोटाले में अवैध सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर नकली रसीदें जारी की जा रही थीं।

कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?
बिना फास्टैग वाहनों से दोगुना टोल नकद वसूला गया।
नकद वसूली को एनएचएआई के अधिकृत टोलिंग मैनेजमेंट सिस्टम में दर्ज नहीं किया गया।
इन वाहनों को "एग्जेम्प्टेड" श्रेणी में दिखाकर नकद राशि को हड़प लिया गया।
"एग्जेम्प्टेड" श्रेणी में वीआईपी और प्रशासनिक वाहनों को टोल फ्री सुविधा दी जाती है, लेकिन इसका दुरुपयोग कर फर्जी रिकॉर्ड बनाए गए।
जांच में क्या मिला?
एनएचएआई की प्राथमिक जांच के अनुसार, हर महीने बिना फास्टैग वाले 8,000 वाहनों से औसतन 200 रुपये प्रति वाहन वसूले गए।
इससे हर महीने 16 लाख रुपये का राजस्व बनता था, लेकिन एनएचएआई को सिर्फ 25 हजार रुपये ही दिए गए।
पिछले तीन वर्षों से इसी तरह घोटाला चल रहा था, जिससे मासिक करीब साढ़े 15 लाख रुपये का नुकसान हुआ।
गिरोह का संचालन
जौनपुर निवासी आलोक कुमार सिंह इस घोटाले का मास्टरमाइंड है। उसने देशभर के 14 राज्यों के 42 टोल प्लाजा पर अवैध सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया था। उसके साथी सावंत और सुखांतु भी इस नेटवर्क का हिस्सा हैं। कुल 200 टोल प्लाजा पर यह फर्जीवाड़ा होने का अनुमान है।
गिरफ्तारी और आगे की कार्रवाई
21 जनवरी को एसटीएफ ने आलोक कुमार सिंह, प्रयागराज के मैनेजर राजीव मिश्रा, मप्र के मनीष मिश्रा और शिवा बिल्टेक कंपनी के आईटी इंजीनियर सावन लाल कुम्हावत को गिरफ्तार किया। पुलिस आरोपियों को रिमांड पर लेकर आगे की पूछताछ कर रही है।
यह घोटाला शिवा बिल्टेक कंपनी के तहत अतरैला टोल प्लाजा से जुड़ा है, जो एनएचएआई को हर महीने 3.75 करोड़ रुपये का भुगतान करती थी। लेकिन कंपनी और गिरोह के सदस्य मिलकर नकद वसूली को अपने खाते में डाल रहे थे।
इस घोटाले से एनएचएआई को भारी राजस्व नुकसान हुआ है, और जांच जारी है।
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