संवाददाता | फरवरी 17, 2025
लखनऊ | दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा की शुरुआत आज से 114 वर्ष पूर्व 18 फरवरी 1911 को प्रयागराज में हुई थी। यह ऐतिहासिक घटना उस समय घटी जब प्रयाग कुंभ के दौरान फ्रांसीसी पायलट हेनरी पिक्वेट ने 6,500 पत्रों को लेकर अपने विमान से उड़ान भरी और नैनी तक 15 किलोमीटर की दूरी मात्र 13 मिनट में तय की।

उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने इस ऐतिहासिक अवसर पर जानकारी देते हुए बताया कि यह दुनिया की पहली आधिकारिक हवाई डाक सेवा थी, जिसने पत्रों को पंख देने का कार्य किया और डाक सेवाओं में एक नए युग की शुरुआत की।
प्रयागराज से नैनी तक की पहली हवाई डाक सेवा
18 फरवरी 1911 को प्रयागराज में 'यूपी एक्जीबिशन' नामक एक कृषि एवं व्यापार मेले के दौरान हवाई डाक सेवा का ऐतिहासिक आयोजन हुआ। जब हेनरी पिक्वेट ने अपने हैवीलैंड एयरक्राफ्ट से उड़ान भरी, तब यमुना नदी के किनारे लगभग एक लाख लोग इस अद्भुत नज़ारे के साक्षी बने। यह विमान प्रयागराज
से उड़कर 15 किलोमीटर दूर नैनी जंक्शन के पास उतरा, जो उस समय सेंट्रल जेल के नजदीक स्थित था।
डाक बैग और ऐतिहासिक पत्र
इस हवाई डाक सेवा के तहत भेजे गए सभी पत्रों को विशेष रूप से चिह्नित किया गया था। इन पर ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ लिखा गया था, साथ ही पारंपरिक काली स्याही के स्थान पर मैजेंटा स्याही का उपयोग किया गया था। यह ऐतिहासिक उड़ान महज छह मील (करीब 9.7 किमी) की थी, लेकिन इसने वैश्विक डाक सेवा में क्रांतिकारी बदलाव किया।
डाक सेवा के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि ब्रिटिश और कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में भारत में प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भेजा था, जो संयोग से प्रयागराज में कुंभ के दौरान आया। उस दौर में जहाज देखना तो दूर, उसके बारे में सुनना भी दुर्लभ था, इसलिए इस ऐतिहासिक आयोजन को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ी थी।
इस ऐतिहासिक उड़ान को लेकर कर्नल वाई विंधाम ने भारतीय डाक विभाग से संपर्क किया और उनकी सहमति से यह प्रयोग सफलतापूर्वक किया गया। इस हवाई डाक सेवा का विशेष शुल्क छह आना रखा गया था और इससे प्राप्त आय को ऑक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हॉस्टल, इलाहाबाद को दान कर दिया गया।
पत्रों के प्रति उत्साह और ऐतिहासिक महत्व
18 फरवरी को दोपहर तक हवाई डाक सेवा के लिए 3,000 पत्रों की बुकिंग की जा चुकी थी। डाक टिकटों की कीमत काफी अधिक थी, जिसमें कुछ पत्रों पर 25 रुपये तक के टिकट लगे थे। राजा-महाराजाओं से लेकर प्रतिष्ठित हस्तियों तक, कई लोगों ने इस ऐतिहासिक डाक सेवा के तहत पत्र भेजे।
डाक सेवा और वैश्विक संचार का विस्तार
श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि आज संचार के तमाम आधुनिक साधन उपलब्ध हैं, लेकिन पत्रों की अहमियत कभी खत्म नहीं हो सकती। हवाई डाक सेवा ने पत्रों को पंख दिए और लोगों के सपनों को नई उड़ान दी। आज जब हवाई जहाजों के माध्यम से दुनिया भर में डाक भेजी जा रही है, तब इस ऐतिहासिक सेवा का श्रेय भारत को जाता है, जिसने 114 वर्ष पूर्व प्रयागराज से इसकी शुरुआत की थी।
यह सेवा सिर्फ डाक परिवहन का माध्यम नहीं थी, बल्कि इसने वैश्विक स्तर पर डाक सेवाओं के नए युग की आधारशिला रखी। दुनिया भर की ऐतिहासिक घटनाओं और महत्वपूर्ण संदेशों के आदान-प्रदान में हवाई डाक सेवा का योगदान सदैव अमिट रहेगा।
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