छांगुर के चेन्नई, लंदन और दुबई कनेक्शन ने बढ़ाई जांच एजेंसियों की चिंता, नीतू से जुड़ाव भी बना रहस्य
- ब्यूरो

- 24 जुल॰
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धर्मांतरण की साजिश रचने वाले छांगुर ने चेन्नई, दुबई और लंदन को जोड़कर एक इंटरनेशनल नेटवर्क खड़ा किया है, जिसे सुलझाने में जांच एजेंसियों के पसीने छूट रहे हैं। नेपाल, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा तक फैले उसके नेटवर्क की कड़ियां जोड़ना जितना आसान था, यूरोप तक फैली इस साजिश को समझना उतना ही मुश्किल साबित हो रहा है। जांच में सामने आया है कि इस पूरे मामले की जड़ें भी इसी अंतरराष्ट्रीय जाल से जुड़ी हैं।
जानकारी के मुताबिक, यह साजिश सुरक्षा एजेंसियों की पहुंच से भी आगे की है। इस कड़ी की शुरुआत होती है चेन्नई से—जहां से छांगुर का संपर्क पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे संगठनों से रहा है। नीतू, जो अब नसरीन बन चुकी है, ने तमिलनाडु में उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं से वह सीए की पढ़ाई कर लंदन की एक कंपनी से जुड़ी, जिसने उसे दुबई में तैनात किया। यहीं उसकी मुलाकात नवीन रोहरा से हुई।
नवीन, एक शिक्षित युवा, दुबई की एक शिपिंग कंपनी में काम कर रहा था। दोनों सिंधी परिवारों से थे, जिससे रिश्ता तेजी से आगे बढ़ा और जल्द ही दोनों ने शादी कर ली।
सब कुछ सामान्य चल रहा था, लेकिन फिर नवीन का नाम कंपनी में हुए एक वित्तीय घोटाले में सामने आया और उस पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज हो गया। यहीं से दोनों की जिंदगी ने अपराध की ओर मोड़ लिया।
इसके बाद नीतू और नवीन दोनों ने इस्लाम कबूल कर लिया। दुबई में ही नवीन रोहरा का धर्मांतरण हुआ और यहीं से छांगुर की विचारधारा से जुड़ाव की शुरुआत हुई।
बाद में तीनों छांगुर, नीतू और नवीन उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले की उतरौला तहसील पहुंचे, जो नेपाल सीमा से सटी है। इस संवेदनशील क्षेत्र ने धर्मांतरण नेटवर्क के विस्तार को और आसान बना दिया।
इनका उतरौला आना महज इत्तेफाक था या किसी बड़ी साजिश की रणनीति, इस पर पूर्व आईबी अधिकारी संतोष सिंह कहते हैं कि मामला जितना सीधा दिखता है, उतना है नहीं।
जांच एजेंसियों का दावा है कि नीतू उर्फ नसरीन सिर्फ 7वीं कक्षा तक पढ़ी है, लेकिन उसकी धाराप्रवाह अंग्रेजी इस दावे पर सवाल खड़े करती है। अधिकारियों के अनुसार, इतनी प्रभावशाली भाषा शैली किसी औसत 7वीं पास के लिए असंभव प्रतीत होती है।
कुल मिलाकर, चेन्नई, लंदन और दुबई से शुरू हुई यह कहानी अब उतरौला में गहरी साजिश का रूप ले चुकी है, जिसे सुलझाने में एजेंसियों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।





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