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आरएसएसी के पोस्ट-मानसून सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा, उम्मीद से ज्यादा जहरीली है लखनऊ की हवा

  • लेखक की तस्वीर: ब्यूरो
    ब्यूरो
  • 4 नव॰
  • 3 मिनट पठन

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रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (आरएसएसी) के पोस्ट-मानसून सर्वे में सामने आया है कि राजधानी की हवा बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। सर्वे के दौरान शहर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 तक दर्ज किया गया, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। यानी अब “सांस संभालकर लीजिए, क्योंकि आप लखनऊ में हैं।”


आरएसएसी के वैज्ञानिकों का कहना है कि राजधानी की हवा अब “गंभीर रूप से प्रदूषित” श्रेणी में पहुंच गई है। बढ़ती आबादी, वाहनों का दबाव, निर्माण कार्य और दिवाली पर छोड़े गए पटाखों ने वायुमंडल में जहर घोल दिया है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि इतने बड़े शहर में केवल छह AQI मॉनिटरिंग सेंटर से प्रदूषण की सटीक स्थिति का आकलन करना अव्यावहारिक है।


282 स्थानों पर किया गया सर्वे, कई जगह हवा बेहद खतरनाक पाई गई

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुधाकर शुक्ला के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम, डॉ. राजीव, नीलेश, पल्लवी, ममता, वैभव, शाश्वत, सौरभ और सुजीत ने 21 से 24 अक्टूबर के बीच शहर के आठ जोनों और 110 वार्डों के 282 स्थानों पर वायु गुणवत्ता जांची।पोर्टेबल AQI डिटेक्टर से मिले आंकड़ों के अनुसार, दिवाली के बाद कई इलाकों में AQI 400 से ऊपर तक पहुंच गया। यह स्तर स्वस्थ लोगों के लिए भी बेहद हानिकारक है। वहीं, दिवाली की रात राजधानी में शोर का स्तर 893 डेसिबल तक रिकॉर्ड किया गया, जो बुजुर्गों, हृदय रोगियों और पशु-पक्षियों के लिए गंभीर खतरा है।


प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में दिख रही अलग तस्वीर

जहां प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपने छह सेंटरों के आंकड़ों में लखनऊ को सामान्यतः “हरा” या “पीला” जोन में दिखाता है, वहीं आरएसएसी की रिपोर्ट में शहर के कई इलाके “लाल” और “बैंगनी” श्रेणी में दर्ज हुए हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत गंभीर माने जाते हैं।


500 वर्ग किलोमीटर में 40 लाख की आबादी, हवा पर बढ़ा बोझ

रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 500 वर्ग किलोमीटर में फैले लखनऊ में 40 लाख से अधिक लोग निवास करते हैं। वाहनों की बढ़ती संख्या, औद्योगिक गतिविधियां और लगातार हो रहे निर्माण कार्यों ने हवा की गुणवत्ता पर भारी दबाव डाला है।


कैंट की हवा भी अब नहीं रही सुरक्षित

सर्वे में अलीगंज, अमीनाबाद, चौक और विकासनगर जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक पाया गया। तालकटोरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थिति भयावह है, जबकि पहले स्वच्छ हवा के लिए पहचाना जाने वाला कैंट इलाका भी अब प्रदूषण की चपेट में आ गया है।


कृत्रिम बारिश पर उठे सवाल

दिल्ली सहित कई राज्यों में प्रदूषण घटाने के लिए कृत्रिम बारिश की योजना पर विचार चल रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों ने चेताया है कि सिल्वर आयोडाइड से कृत्रिम बारिश कराना बच्चों और पर्यावरण, दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। यह रासायनिक तत्व मिट्टी और जल में स्थायी रूप से जमा होकर त्वचा और श्वास संबंधी बीमारियां बढ़ा सकता है।


अधिक AQI मॉनिटरिंग सेंटरों की जरूरत

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि शहर के अधिक से अधिक इलाकों में नए AQI सेंटर स्थापित किए जाएं ताकि हर वार्ड की वास्तविक स्थिति सामने आ सके। साथ ही नागरिकों को भी प्रदूषण नियंत्रण में अपनी भूमिका निभानी होगी, जैसे वाहनों का उत्सर्जन जांचना, ट्रैफिक नियंत्रण, पटाखों का सीमित उपयोग और हरियाली बढ़ाना।


वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) स्तर - रंग संकेत और प्रभाव

AQI स्तर

रंग संकेत

हवा की स्थिति

स्वास्थ्य पर असर

0–50

हरा

अच्छा

कोई खतरा नहीं

51–100

हल्का हरा

संतोषजनक

सामान्य असर

101–200

पीला

मध्यम

सांस की हल्की परेशानी

201–300

नारंगी

खराब

अस्थमा या सांस के मरीजों को दिक्कत

301–400

लाल

बहुत खराब

गंभीर स्वास्थ्य खतरा

401 से ऊपर

बैंगनी

अत्यंत गंभीर

स्वस्थ लोगों के लिए भी खतरा


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